जंगली, गँवार, देहाती
रुको, मैंने जान लिया है सब कुछ जान गया हूँ मैं तुम्हारी सारी समस्याओं की जड़ अरे रुको, तनिक साँस ले लेने दो मैं चुप हूँ तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं जानता नहीं हूँ अपितु सोच रहा हूँ मैं कि कैसे समझाऊँ तुम्हें। हाँ, हाँ वही वही तो कह रहा हूँ मैं आओ मेरे साथ और चलो श्रम करने, खेतों में कि मिलेंगे उसी मार्ग में सारे अनुभव महसूस कर आया हूँ मैं जिन्हें। अरे नहीं-नहीं तुम गलत समझे मैं तुम्हें पुराने जमाने नहीं ले जा रहा या जंगली, गँवार, देहाती नहीं बना रहा मैं तो तुम्हें प्रकृति के सान्निध्य में ले जाना चाहता हूँ और जंगली, गँवार, देहाती बनाना चाहता हूँ। अरे! ये मैं क्या कह गया? मैंने तो जंगली, गँवार, देहाती कहना चाहा था पर तुमने जंगली, गँवार, देहाती कैसे समझ लिया! अरे हाँ! शब्द तो मेरे भी वही थे पर मैं कैसे समझाऊँ कि मेरा मतलब वह नहीं था! क्या! मैं पागल हूँ? कि तुम्हें बेवकूफ बना रहा हूँ? अरे नहीं, नहीं तुम लोग समझे नहीं बेवकूफ तो दरअसल तुम लोग हो ही... अरे, अरे ठहरो ये क्या कर रहे हो! पत्थर क्यों उठाने लगे तुम लोग?