प्रार्थना-1


मन चाहता है आज करना प्रार्थना
माँगना तो कुछ नहीं, जो मिला है वह बहुत है
बस दूँ चुका मय ब्याज के यह कर्ज, है बस कामना।
धुंध राहों में बहुत थी, मार्ग भटका बार-बार
जब जरूरत थी मिली, सबकी मुुुुझे सद्भावना
अकड़ता ही रहा अब तक, सिर कभी न झुका सका
माफ करते रहे सब, मैं ही न कर पाया क्षमा
दे न पाया जो कभी, वह आज कैसे माँग लूँ
है यही संकोच मन में, है अधूरी साधना।
मांगता तो कुछ नहीं, बस आज करना चाहता हूँ प्रार्थना।

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