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Showing posts from March, 2023

अच्छाई की ओर

इस दुनिया में अनगिनत हुए हैं महापुरुष ईश्वर का दर्जा मिला न जाने कितनों को कंटकाकीर्ण पथ पर चलकर आगे की राह दिखाई जिनने आने वाली पीढ़ी को। आसान बहुत है मेरी खातिर उनके अनुभव से उठा फायदा अच्छाई के पथ पर आगे चल पाना फिर भी इतना सा काम नहीं क्यों कर पाता? ईश्वर न सही, इंसान एक अच्छा बनना इतना ज्यादा तो कठिन नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम के जितना त्याग न कर पाऊं, न सही कर पाऊं भले न उस हद तक पालन सच का कर गये जहां तक हरिश्चंद्र बन के मिसाल आदर्श एक मानव तो पर बन सकता हूं अपने पुरखों के पदचिह्नों पर चलने की कोशिश तो कर ही सकता हूं! रचनाकाल : 29 मार्च 2023

अंतिम हद

मैं अक्सर अपने बूते से बाहर का बोझ उठाता हूं ईश्वर मुझ पर झल्लाता है, जब नहीं मानता दण्डित करने की भी कोशिश करता है कर देता है अस्वस्थ, काम जब हद से बाहर करता हूं। रुक जाता हूं तब जरा देर की खातिर, ले लेता थोड़ा विश्राम कि हद से बाहर निकल न जाये गुस्सा ईश्वर का हो जाय न सबकुछ तहस-नहस इसलिये लचीलापन रखकर तब कदम-दो कदम पीछे भी हट जाता हूं। पर जैसे ही तन लगने लगता स्वस्थ कि फिर से दुस्साहस हो जाते मेरे शुरू सहनसीमा की अंतिम हद तक तन-मन को फिर से ले जाता हूं। दरअसल काम है इतना ज्यादा, नहीं बैठ पाता हूं ज्यादा देर शक्ति संचय की करते हुए प्रतीक्षा जितनी भी है पास जमा-पूंजी तन-मन की कुछ भी नहीं बचा कर रखता, सबकुछ अर्पण करता हूं ईश्वर करता है क्रोध, जानलेवा खतरों से लेकिन रक्षा करता है मैं भी करता सहने की उसकी सीमा का सम्मान मौत से लुकाछिपी के बीच लांघता नहीं कभी सीमा को हद में रहकर जीवन को उसकी अंतिम हद तक ले जाता हूं। रचनाकाल : 26 मार्च 2023

आत्मनिरीक्षण

जब भी दुनिया बुरी नजर आती मुझको मैं जाता हूं यह समझ बुराई मेरे भीतर पैठ चुकी है ठहरे पानी जैसा मन मेरा है सड़ने लगा वक्त आ गया कि अपनी साफ-सफाई करने का। महसूस किया है मैंने यह हरदम कि नहीं कर पाता हूं जब आत्मनिरीक्षण कई दिनों तक धुंधलाने लग जाता है मन का दर्पण हर चीज नजर आने लगती है बुरी निराशा मन में छाने लगती है। इसलिये कसौटी बना रखी है मैंने खुद की खातिर जैसे ही निंदा रस अच्छा लगने लगता है औरों पर दोषारोपण करने का मन करने लगता है हो जाता अंतर्मुखी, ढूंढ़ता कहां बुराई छिपी हमेशा मेरे भीतर से ही तब कचरे का ढेर निकलता है। इस तरह बुराई करता हूं मैं दूर स्वयं बनता हूं पहले से थोड़ा सा बेहतर दुनिया भी पहले से बेहतर बनती जाती है जो बुरे नजर आते थे पहले अच्छाई में मुझसे आगे दिखते हैं उनको पाने की कोशिश में मैं भी अच्छाई के पथ पर आगे ही बढ़ता जाता हूं। रचनाकाल : 23 मार्च 2023

उल्लास उधारी का

मैं खूब मनाऊं जश्न, चाहता तो हूं पर मेहनत ही इतनी नहीं किया, सो सकूं बेच कर घोड़े इतना नहीं मूलधन पास परिश्रम का मेरे मिल सके ब्याज के तौर ताकि उल्लास मुझे भरपूर छटपटा रहा कि कैसे पर्व मनाऊं होली का! लेना उधार तो कभी न रहा पसंद, किंतु चलती है दुनिया जैसे आज उधारी पर मैं भी खुद से चाहता कि ले लूं कुछ उल्लास उधार स्वयं से कर लूं वादा उत्सव आज मनाने के बदले में वर्ष भर खूब करुंगा मेहनत, खुद के प्रति रह कर ईमानदार धरती को जो पहुंची है क्षति, करके उसकी भरपाई पहले से थोड़ा बेहतर यह विश्व बनाऊंगा! त्यौहार बिना उल्लास कहीं रह जाय नहीं सूना-सूना इसलिये स्वयं से करके ढेरों वादे अपने ही हाथों में खुद को गिरवी रखता हूं होली का जश्न मनाता हूं। रचनाकाल : 7 मार्च 2023