जीवन-संगीत
समय नहीं मिलता है लिखने को कविता, पर चाहता हूं जीवन ही कविता सा बन जाय एक-एक दिन लगें एक-एक कविता से कविता को पढ़ने से मिलता आनंद जितना लोगों को संगत से भी मेरी उतना ही उनको आनंद मिले मेरे सारे कामों में कविता सी झलके पवित्रता। बेशक आसान नहीं बना पाना जीवन को कविता सा होते ही गाफिल जरा देर को भी दूषित होने लगता मन सजग रहना पड़ता निरंतर ही अपने सारे कामों में। कोशिश तो करता हूं जागते ही रहूं सदा झपकी पर लग जाती कभी-कभी ठहरे हुए पानी सा दूषित होने लगता है मन जब तो सहसा ही जागता हूं करता हूं खुद को परिमार्जित सुंदर सर्वांग किसी कविता सा भले ही न बन पाये जीवन पर लयबद्धता तो आती जाती है भले ही न निकल पाये सुमधुर संगीत पर बेसुरा तो कम से कम होने नहीं पाता हूं। रचनाकाल 23 फरवरी 2022