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Showing posts from September, 2023

कलाकार का ध्येय

हो कठिन भले ही कितना भी जीवन लेकिन कविता उसमें मिल जाती है तो सुंदर लगने लगता है चटनी-अचार से नीरस भोजन भी जैसे लगता रुचिकर लयबद्ध अगर हो, असहनीय भी सहने जैसा लगता है मैं नहीं जुटाता सुख-सुविधा, अपनी या दुनिया की खातिर करता मेहनत घनघोर, दूसरों को भी करने खातिर प्रेरित करता हूं घबरा कर लौटें बीच राह से लोग नहीं इसलिये कठिन दुर्गम पथ पर मैं गीत सुनाता चलता हूं कितनी भी हो हालत खराब, हो चुका पतन हो कितना भी पर कुछ भी नहीं असम्भव है दृढ़-निश्चय कर ले मानव तो इसलिये जगाता हूं मैं सद्‌वृत्तियां सभी के भीतर की अहसास कराता हूं उनको उनके ही मन की ताकत का बस एक बार चल पड़ें दिशा में लोग सही फिर मेरी नहीं जरूरत कुछ रह जायेगी पर दिशा बदल पाऊं विकास की इसीलिये संगीत-गीत हो, चित्रकला या चाहे कोई ललित कला सबका करके उपयोग, सभी को आकर्षित करने की कोशिश करता हूं जो दावानल में बदले, वह चिनगारी बन पाने की धुन में रहता हूं। रचनाकाल : 18-19 सितंबर 2023

जीवन की पाठशाला

पहले मैं बहुत परीक्षाओं से डरता था चुपके से करके नकल पास होने की कोशिश करता था इसलिये रह गया कच्चा कई जगह पर डरता गया आग से जितना उतना कचरा भीतर होता गया इकट्ठा अब भरपाई अपनी गलती की करने की कोशिश करता हूं रखता हूं मन पर कड़ी नजर बचने का खुद को मौका देता नहीं स्वयं के भीतर मिलती खोट अगर करता हूं उसको दूर पाठशाला में जीवन की होता हूं पास कि सीढ़ी-दर-सीढ़ी ऐसे ही आगे बढ़ता हूं अनुभव ने दी है सीख सीखने की कोई सीमा है नहीं जिंदगी में जब तक हम कुछ भी नया सीखते रहते हैं तब तक ही खुद को जिंदादिल रख पाते हैं जिस दिन से हम सीखना बंद कर देते हैं उस दिन से ही शायद मरने लग जाते हैं! रचनाकाल : 17 सितंबर 2023

चक्र

सुबह से शाम होती है वही दिन फिर निकलता है वही सब काम करता हूं अजब बेचैनी होती है कि जिंदा हूं अगर तो जिंदगी में फिर नया क्या है! कि दिन-दिन करके ढलती उम्र क्या हासिल मगर होता अगर जो आज हूं, कल भी नहीं कुछ भी बदलना है तो यूं ही यंत्रवत, जड़वत जिये जाने की खातिर ही जिये जाने में क्या है फिर समझदारी? रचनाकाल : 14 सितंबर 2023

परम सत्य की चाह

मन जोगी जैसा पर्वत-जंगल भटका करता है यह किसने श्राप दिया मुझको, बेचैन हमेशा रहता हूं जितनी जुटती हैं सुविधाएं उतनी ही पीड़ा सहता हूं  जो जितना रहता निकट उसी को ताप प्रखर क्यों सहना पड़ता है? एकाकी जलता रहता हूं जो मित्र चाहते बनना, उनको शत्रु बनाता रहता हूं यह कैसा है मेरा स्वभाव, निष्पक्ष न्याय की कोशिश में अपने को, अपनों को ही सबसे ज्यादा पीड़ित करता हूं! है नहीं कौरवों का खेमा मेरा अपना पर अंगराज के अंतर्मन की पीड़ा व्याकुल करती है ठहरा पाता हूं किसी तरह भी सही नहीं जयद्रथ वध को मरते बाली की आंखों का विस्मय क्यों मारक लगता है? मैं रावण या दुर्योधन की संस्कृति का नहीं पक्षधर हूं पर राम, कृष्ण का हल्का सा भी छल मुझको लगता असह्य यदि जीत नहीं मिल सकती छल के बिना, हमेशा लड़ते रहना चाहूंगा मन इसीलिये अभिशापित सा शायद, खुद से ही हरदम लड़ता रहता है! रचनाकाल : 12 सितंबर 2023

दृढ़संकल्प

मैं नहीं मारता जान-बूझकर अपने पैर कुल्हाड़ी आती पर जब आपदा, नहीं फिर उसको पीठ दिखाता हूं। दरअसल विघ्न-बाधाओं से मैं पहले बचकर चलता था आते ही कठिन रुकावट, रुक जाता था फिर से नये सिरे से काम दूसरा करता था इस तरह अधूरे कामों का लग गया ढेर जब सहसा मुझको लगा कि ऐसे में तो मंजिल कभी नहीं मिल पायेगी! तब से मैंने संकट से डरना छोड़ दिया हो कठिन रुकावट कितनी भी मैं बिना हटाये उसे न पीछे हटता हूं प्राणों की बाजी लगा किसी भी हालत में अपने सारे कामों को पूरा करता हूं कमजोरी जो भी लगती अपनी मुझे, उसे ही ताकत में परिवर्तित करता जाता हूं कितने भी अशुभ रहे हों सारे लक्षण पर पीकर के सारा गरल, अंत में शिव ही बने शुभंकर थे! रचनाकाल : 10 सितंबर 2023

सरलता

सहज-सरल भाषा में कविता लिख पाना पहले मुझको कठिन बहुत ही लगता था मन में जो भी उठते विचार कागज पर आते-आते उनका भाव बदलने लगता था। इस कोशिश में ही लेकिन मुझको पता चला मन ही मेरा है जटिल दरअसल इतना संभव हो ही पाता नहीं सरल कुछ लिखना जो छू ले लोगों के दिल को सीधे-सीधे ही! तब से मैंने सब छोड़ दिये छल-छद्म सरलता जैसे-जैसे मन में आती गई सरल कविता भी होती गई भले वह कर न सके विद्वानों को आकर्षित जन-मानस को लेकिन भाती है मुझको भी संगत बुद्धिजीवियों की बजाय बच्चों या उनके जैसे निश्छल लोगों की रास आती है। रचनाकाल : 9 सितंबर 2023

मन की शक्ति

मैं नहीं चाहता मन को सीमाबद्ध करूं यह जितनी चाहे ऊंची भरे उड़ान अतल सागर के तल तक जाय मगर जड़ से न कहीं कट जाय इसलिये यम-नियमों का प्रतिदिन पालन करता हूं। मन रहे अगर संस्कारित तो कर पाता अपनी आजादी का सदुपयोग वरना होकर यह बेलगाम कर देता तन को नष्ट-भ्रष्ट इसलिये नियम-अनुशासन में रखकर इसको मैं अपना मित्र बनाता हूं लगते हैं काम असंभव जो मन की ताकत से उनको भी कर जाता हूं। रचनाकाल : 7-9 सितंबर 2023

जद्दोजहद

था वह भी कोई समय कि जब मैं भीषण युद्ध लड़ा करता कर देता लहूलुहान स्वयं को, लेकिन मन को करने देता था न कभी भी मनमानी। अब नहीं शक्ति वह पहले जैसी रही सह नहीं पाता सुख या दु:ख ज्यादा इसलिये निरंतर रखता खुद को सजग हमेशा करता साफ-सफाई मन की छोटे-छोटे दोषों को करता रहता निर्मूल अगर जड़ जरा पकड़ ली ज्यादा तो है पता कि छुटकारा न कभी फिर उनसे पाऊंगा। पहले के जैसा दौड़ नहीं पाता हूं अब फर्राटे से कछुए के जैसा घिसट-घिसट कर चलता हूं पर मन को होने देता नहीं निरंकुश देती है यह सीख कहानी चलना जारी रखे निरंतर तो कछुआ भी जीता करता है! रचनाकाल : 28-29 अगस्त 2023

जीने की राह

जो जैसा सोचा करता है वह वैसा ही बन जाता है दुनिया यह बहुत लचीली है कुछ भी है यहां असत्य नहीं विश्वास परस्पर रखकर भी विपरीत सभी सच के पथ पर हो सकते हैं मिलते हैं अच्छे लोग आस्तिकों में जितने उतने ही अच्छे नास्तिक भी मिल जाते हैं यह बात लगे कितनी अजीब भी चाहे मछली खाकर भी बंगाली लेकिन भावुक सबसे ज्यादा होते हैं होकर भी नानवेज मुस्लिम ग़ज़लें-नज़्में लिख लेते हैं! मैं शुद्ध अहिंसावादी हूं पर पता मुझे है जंगल में हिंसा की सत्ता चलती है इसलिये नहीं मैं कोशिश करता सब मेरे ही जैसे हों जो जैसा भी है भीतर से अपने विश्वासों पर वह सदा खरा उतरे खुद से न करे नाइंसाफी तो जीना शायद सफल सभी का होता है! रचनाकाल : 30 अगस्त 2023