अहिंसक प्रतिरोध
कुछ कोई कहे अनर्गल या नाजायज कोई काम करे आगबबूला तब मैं गुस्से से हो जाया करता था मुझको लगता था देख कहीं अन्याय कोई चुप रह जाना कायरता है। गुस्सा लेकिन मन में पैदा कर देता था अवसाद शांति भीतर की सारी हो जाती थी भंग देर तक अनायास ही मन झुंझलाया रहता था। फिर मैंने खुद को बना लिया इतना कठोर पत्थर से जैसे टकराये कोई तो लगती चोट कोई टकराता मुझसे खुद घायल हो जाता था। पर पाया मैंने पथराती जाती है संवेदना दूृसरों के हमलों का असर नहीं होता लेकिन भीतर से पत्थर जैसा बनता जाता हूं। इसलिये नहीं अब कुण्डल-कवच पहनता सीना खोल वार सहता हूं सारे लोगों के जितना भी वे चाहते मुझे हो कष्ट ठीक उतना पूरी शिद्दत से सहता जाता हूं होकर भी लहूलुहान, नहीं करता पत्थर से वार मगर पीछे भी हटता नहीं एक भी इंच इस तरह करता हूं प्रतिरोध सभी अन्यायों का। अद्भुत होता है असर इस तरीके का पानी करता जैसे पत्थर में सूराख पिघलते जाते वैसे पत्थरदिल अन्याय छोड़कर राह न्याय की अपनाते इस नये तरीके में होती है नहीं किसी की हार जीतते जाते हैं सब लोग, जीत मेरी भी होती जाती है। रचनाकाल : 16 सितंबर 2022