Posts

Showing posts from June, 2023

बुराई की जड़

पहले जब मैं छिपकर करता था पाप नहीं दुनिया को चल पाता था उसका पता बहुत खुश होता था तब मन ही मन भोगनी पड़ी कोई भी मुझको सजा नहीं दुनिया की नजरों में शरीफ ही बना रहा। पर अपनी नजरों से बच पाता था मेरा अपराध नहीं मिल जाती कोई सजा अगर तो हो जाता अपराधबोध शायद समाप्त इसके बजाय, अपनी नजरों में गिर जाने का दण्ड मुझे तब बहुत भयानक लगता था। इसलिये दूर होता ही गया बुराई से मन जैसे-जैसे उजला होता गया दाग हल्का सा भी लगने पर भी पीड़ा मन में होने लगती थी असहनीय। अब तो ऐसी हालत है मन में मेरे उठता है जब कोई दुर्विचार तत्काल सजा उसकी खुद को दे देता हूं जड़ जमने ही देता हूं नहीं बुराई की यह सीख गया हूं अनुभव से जितनी ही होगी देर सफाई करने में उतना ही कचरा भीतर बढ़ता जायेगा मन धीरे-धीरे इतना ज्यादा मैला होता जायेगा हो जायेगा अपराधबोध सब खत्म बुराई बन जायेगी स्वाभाविक दलदल में जीना ही स्वभाव हो जायेगा। रचनाकाल : 19 जून 2023

हंसी

जब से मैंने कला सीख ली हरदम हंसते रहने की दुनिया ही बदल गई अब सबकुछ उजला-उजला दिखता है जिन लोगों में पहले मैं हरदम नुक्स निकाला करता था उन लोगों में भी अब मुझको सब अच्छा-अच्छा दिखता है। कोई भी क्रोधित कर सकता था पहले मुझको, जब चाहे चिंगारी पड़ते ही मैं सूखी घास की तरह जलता था अब सबके गुस्से को मैं हंसकर ठण्डा करता रहता हूं जो सूख चुके हैं भीतर से, उनको हंस-हंस कर तरल बनाता रहता हूं। बेशक मेरे भीतर भी है खारापन गहन समंदर का पर बादल बनकर दावानल को बुझा सकूं इसलिये तपा कर खुद को, बन कर भाप, रसातल से चल कर हर साल हिमालय तक की यात्रा करता हूं सबसे अच्छाई लेकर सबको गुरु मान मैं मानसून की तरह, बादलों सा छाकर बरसात हंसी की, दुनिया में लाने की कोशिश करता हूं। रचनाकाल : 17 जून 2023