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Showing posts from November, 2023

त्रासदी

है अजब त्रासदी दुनिया की करते तो हैं हम काम खूब पर अपने मन का कभी नहीं कर पाते हैं ! नौकरी छोड़ती है जब तक पीछा, तब तक बूढ़े या फिर इतना निर्बल हो जाते हैं सपने या तो मर जाते हैं या सपने ही रह जाते हैं! कितना सुंदर हो यदि सबको दुनिया में अपने-अपने मन का काम मिले खिलते हैं जैसे फूल ढंग से अपने सब इंसान सभी हम भी अपनी ही तरह खिलें! इससे बढ़कर क्या हो सकती है विडंबना जीवन भर, भरने खातिर पेट जिया करते हासिल कुछ किये बिना दुनिया में आखिर में मर जाते हैं ! रचनाकाल : 25 नवंबर 2023

सर्वधर्म समभाव

धर्मों का देख बुरा चेहरा नास्तिक तो मैं बन गया मगर मन में खालीपन करता था महसूस छोड़ आया था जिनके कारण मैं धर्मों को वही बुराई मेरे खाली मन में फिर से भरने लगीं हुआ अहसास तभी सहसा कि बुराई नहीं धर्म में बल्कि स्वयं मेरे ही मन में है। तब से मैं सारे धर्मों की अच्छी-अच्छी बातों को अपनाने की कोशिश करता हूं होली-दीवाली के संग अब मैं कठिन साधना का छठ पर्व मनाता हूं अपनाता हूं जैनों के क्षमा पर्व को सेवाभाव सीखता सिख समाज से रोजे रखता, जैसे मुस्लिम रखते हैं। मैं कट्टरता का अर्थ कड़ा अनुशासन करता मेहनत को घनघोर, तपस्या का देता हूं नाम झाड़ कर धूल पुराने रत्नों की जो मिली विरासत पुरखों से भरपूर उठाता लाभ सौंपने खातिर भावी पीढ़ी को समृद्ध विरासत को ज्यादा समृद्ध बनाता जाता हूं। रचनाकाल : 20 नवंबर 2023

प्रतिरोध का तरीका

पहले मेरा मन इतना ज्यादा नाजुक था छोटी-छोटी बातों से भी आहत हो जाया करता था जो भी चाहे पहुंचा सकता था ठेस मुझे बचने खातिर इससे सोचा, जैसे गुलाब कांटे पैदा कर अपनी रक्षा करता है मैं भी बनकर बाहर से कांटेदार करूं अपने कोमल मन का बचाव पर कांटे चुभें किसी को भी घायल मेरा मन होता था इसलिये बचाने खातिर अपने मन को मैं कछुए सा बनना सीख गया चमड़ी इतनी मोटी कर ली करता है जब कोई प्रहार मैं खुद को अपने भीतर सिमटा लेता हूं सह लेता सारे अपशब्दों को निर्विकार इस तरह पार करता जाता हूं बीहड़ रेगिस्तानों को। रचनाकाल : 13 नवंबर 2023

न्याय का तरीका

मैं न्यायाधीश नहीं हूं पर अन्याय जहां भी दिखता है वह मुझसे सहन नहीं होता सह करके भी नुकसान पीड़ितों को देने की भरपाई मैं भरसक कोशिश करता हूं। कुछ लोगों को यह लगता है भावुकता में हर बार ठगा जाता हूं मैं पर मुझे पता है कविता में भरपाई मुझको मिल जाती है कई गुना मन जितना निर्मल रहता है उतना अच्छा लिख पाता हूं। जो भी करते अन्याय समझते हैं मुझको वे बेवकूफ मन मैला उनका देख मगर दु:ख मुझको गहरा होता है सुख मिलता है जो अनुपम उज्ज्वल अंत:करण बनाने से अहसास कभी क्या उसका वे कर पायेंगे! रचनाकाल : 7 नवंबर 2023

सिलसिला

कितना भी हो विपरीत समय मैं त्यौहारों को विधि-विधान उल्लास-जोश के साथ मनाया करता हूं इनके जरिये हम जुड़ते हैैं प्रााचीनकाल की उन प्रेरक घटनाओं से जो देती हैैं संदेश कि जीवन कैसा हो हासिल हो पाये या कि नहीं पर लक्ष्य जिंदगी जीने का तो कोई हो! इसलिये मिली हैैं स्मृतियां जो पुरखों से हमें विरासत में जीवंत बनाए रखने की उनको, मैं कोशिश करता हूं यह डोर अगर जो टूट गई आने वाली पीढ़ियां हमारी जड़विहीन हो जायेंगी सिलसिला हजारों सालों से चलता आया जो उसे मिटाने खातिर हमको माफ नहीं कर पायेंगी। रचनाकाल : 12 नवंबर 2023

तमसो मा ज्योतिर्गमय

दिल खोल मनाते थे बचपन में दीवाली बंदूक अगर मिल जाती थी टिकली वाली तीनों लोकों का सुख मानो मिल जाता था मां खूब बनाती थी लड्डू-चकली-चूड़ा कुछ खुलेआम, कुछ लुकाछिपी से लेकिन सब दो दिन में ही हम बच्चे चट कर जाते थे मिट्टी के दिये जलाते थे घर-आंगन में जुगनू जैसे जगमग करते, मन आलोकित कर जाते थे। दुनिया तबाह करते जाते जो महाविनाशक बम-गोले अब नकली बंदूकों से भी डर लगता है ब्लडप्रेशर-शुगर सहित अनगिनती रोगों ने तन-मन को ऐसा घेर लिया, कुछ नहीं पेट में पचता है बिजली की लड़ियों से मकान तो चकाचौंध हो जाता है मन में महसूस नहीं होता पर, पहले जैसा उजलापन बाहर का सारा अंधकार क्या भीतर सिमटा जाता है? हे ईश्वर, इस दीवाली मेरे मन के तम को हर लेना! रचनाकाल : 10-11 नवंबर 2023

रूपांतरण

मैं नहीं गंवाता समय, खोज में दुनिया में अच्छाई की जो होता है उपलब्ध उसी से अपने सपनों की दुनिया रचने की कोशिश करता हूं जो समय मिला है मुझको अपने हिस्से में जीने का हो वह कितना भी टूटा-फूटा मैं खण्डहरों को कच्चा माल समझ कर उनसे भव्य इमारत रचता हूं। मिल जायें यदि सारी चीजें आदर्श रूप में दुनिया में करने को क्या रह जाता है फिर हमको अपने जीवन में! इसलिये बुराई को ही मैं मेहनत करके घनघोर बदलता जाता हूं अच्छाई में आखिर जो विष था सारी दुनिया की खातिर पीकर उसको ही तो शिवशंकर नीलकण्ठ कहलाये थे। रचनाकाल : 1 नवंबर 2023

सदुपयोग

पंचतंत्र में मैंने पढ़ी कहानी थी गीदड़ ने गढ़ कर झूठ  गलतफहमी पैदा कर बना दिया था दुश्मन ऐसे सिंह-बैल को जो थे कभी घनिष्ठ मित्र। मैं भी गढ़ता हूं झूठ दुश्मनों की करता हूं एक-दूसरे के आगे तारीफ बताता हूं सबको उनका दुश्मन अपने आगे उनकी सराहना करता है! इस तरह खत्म करता हूं मैं दुश्मनी गलतफहमी का करके गीदड़ ने जो दुरुपयोग दुश्मनी बढ़ाई दुनिया में मैं करके उसका सदुपयोग दोस्ती बढ़ाता चलता हूं। रचनाकाल : 31 अक्तूबर 2023