सर्वधर्म समभाव


धर्मों का देख बुरा चेहरा
नास्तिक तो मैं बन गया
मगर मन में खालीपन
करता था महसूस
छोड़ आया था जिनके कारण मैं धर्मों को
वही बुराई मेरे खाली मन में
फिर से भरने लगीं
हुआ अहसास तभी सहसा
कि बुराई नहीं धर्म में
बल्कि स्वयं मेरे ही मन में है।
तब से मैं सारे धर्मों की
अच्छी-अच्छी बातों को
अपनाने की कोशिश करता हूं
होली-दीवाली के संग अब
मैं कठिन साधना का छठ पर्व मनाता हूं
अपनाता हूं जैनों के क्षमा पर्व को
सेवाभाव सीखता सिख समाज से
रोजे रखता, जैसे मुस्लिम रखते हैं।
मैं कट्टरता का अर्थ कड़ा अनुशासन करता
मेहनत को घनघोर, तपस्या का देता हूं नाम
झाड़ कर धूल पुराने रत्नों की
जो मिली विरासत पुरखों से
भरपूर उठाता लाभ
सौंपने खातिर भावी पीढ़ी को
समृद्ध विरासत को ज्यादा
समृद्ध बनाता जाता हूं।
रचनाकाल : 20 नवंबर 2023

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