कलाकार
नहीं होती जरा सी ऐब यदि मुझमें तो दुनिया में मुझे कोई कमी धन-संपदा की रह नहीं जाती कला यदि सीख लेता मैं कि कैसे बेचनी मुझको कला अपनी तो मालामाल कर देती कला मुझको मगर यह कर नहीं पाया जो सपने देखता था, कोशिशें तो खूब करता था उन्हें साकार करने की मगर सपने दिखाना, बेचना मुझको नहीं आया बहुत है माल मेरे पास, कहते थे सभी लेकिन मुझे उसकी तिजारत ही कभी करना नहीं आया कि कहते थे जिसे वे मेरा ‘एटीट्यूटड’ मुझे वह स्वाभिमान अपना हमेशा अपने प्राणों से भी प्यारा था जरा सा ‘ऐब’ कहते वे जिसे मेरा वही तो मेरे जीने का सहारा था! खरा सोना बनूं, हरदम यही चाहा मगर खुद को दिखाना ही नहीं आया कभी पालिश स्वयं को कर नहीं पाया हमेशा जिंदगी में इसलिये असफल रहा आया! रचनाकाल : 20 मई 2023