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Showing posts from May, 2023

कलाकार

नहीं होती जरा सी ऐब यदि मुझमें तो दुनिया में मुझे कोई कमी धन-संपदा की रह नहीं जाती कला यदि सीख लेता मैं कि कैसे बेचनी मुझको कला अपनी तो मालामाल कर देती कला मुझको मगर यह कर नहीं पाया जो सपने देखता था, कोशिशें तो खूब करता था उन्हें साकार करने की मगर सपने दिखाना, बेचना मुझको नहीं आया बहुत है माल मेरे पास, कहते थे सभी लेकिन मुझे उसकी तिजारत ही कभी करना नहीं आया कि कहते थे जिसे वे मेरा ‘एटीट्यूटड’ मुझे वह स्वाभिमान अपना हमेशा अपने प्राणों से भी प्यारा था जरा सा ‘ऐब’ कहते वे जिसे मेरा वही तो मेरे जीने का सहारा था! खरा सोना बनूं, हरदम यही चाहा मगर खुद को दिखाना ही नहीं आया कभी पालिश स्वयं को कर नहीं पाया हमेशा जिंदगी में इसलिये असफल रहा आया! रचनाकाल : 20 मई 2023

सांध्य बेला

मैं करता ही रह गया सफर की तैयारी कब घिर आई यह सांझ, पता कुछ चल न सका भयभीत सोचता हूं अब मंजिल तक मैं कैसे पहुंचूंगा? कितनी हसरत से मैंने सारे सरंजाम जुटाये थे क्या-क्या देखा था ख्वाब कि कैसे दुनिया सारी बदलूंगा बस मुक्त जरा हो जाऊं अपनी निजी प्राथमिकताओं से पूरी कर लूं जिम्मेदारी अपनी, अपने ही घर के प्रति फिर खुद को सेवा में समाज की तन-मन-धन से झोंकूंगा पर देह हो गई कब जर्जर इस बीच, नहीं यह समझ सका अब मुक्त हो चुका हूं जब अपने सभी निजी कर्तव्यों से चुक गई शक्ति भी, कैसे अब बदलूं समाज को डूब रहा मन, देख डूबते सूरज को सपनों में देखा किया जिसे बचपन से ही उस सपनीली दुनिया तक कैसे पहुंचूंगा? रचनाकाल : 13 मई 2023