अनासक्ति योग
पहले मैं जो पाने की इच्छा रखता था जी-जान लगाकर उसके पीछे पड़ता था मिलने पर होती इतनी ज्यादा खुशी कि अनुशासन हो जाता ध्वस्त अराजक दिनचर्या हो जाती थी असफल रहने पर भी लेकिन इतना ज्यादा होता हताश अनुशासित जीवन छोड़ कई दिन गुमसुम जैसा रहता था। इसलिये नहीं अब फल के पीछे पड़ता हूं मेहनत तो करता खूब मगर परिणाम सदा ईश्वर पर छोड़ा करता हूं बस यही प्रार्थना करता हूं जो भी हो मेरे लिए उचित मेरे हिस्से वह दे देना सुख हो या हो दु:ख-कष्ट सफलता-असफलता ईश्वर का मान विधान सदा सिर-माथे पर वह रखता हूं अनुशासन भंग नहीं होता करता हूं जो भी काम हमेशा होता है वह अद्वितीय डरता था नीरस मान जिसे वह अनासक्ति का योग मधुर अब सबसे ज्यादा लगता है। रचनाकाल : 25 अगस्त 2023