विचारों की फसल


‘मैं नहीं छोड़ जाऊंगा धन-संपदा विरासत में कोई
बीमा भी कोई नहीं कि मरने पर तुमको प्रतिदान मिले
बच्चो, निराश पर मत होना
ये लेखन, जो मिट्टी के लगता मोल अभी
अनमोल किसी दिन साबित होने वाला है
आने वाली पीढ़ियों को यही राह दिखाने वाला है।’

वह लेखक था आश्वस्त स्वयं, बच्चों को भी
आश्वस्ति यही देने की कोशिश करता था
निर्धन होकर भी मन से था समृद्ध
नहीं चिंता भविष्य की अपनी या बच्चों की कोई करता था
बोये थे उसने बीज विचारों के जो, था निश्चिंत
बड़े होकर फल से वे पेड़ सभी लद जायेंगे
दुनिया को वैचारिकता से समृद्ध खूब कर जायेंगे।

जाने पर कैसी थी जमीन, या बीज बांझ थे!
फसल नहीं लहलहा सकी, समृद्ध न मन हो सके
नहीं सह पाया सदमा, लेखक वह मर गया
समझ ही पाया नहीं अंत तक, गलती कहां हुई
बंजर तो बीज न हर्गिज थे, क्यों नहीं उगे?

सदियां बीतीं, वह पीढ़ी मर-खप गई, नई कोंपल फूटी
लहलहा उठी दुनिया में फसल विचारों की
बोये थे बीज विचारों के जो लेखक ने
वे फलीभूत अब हुए
नहीं दुनिया में वह सशरीर देख पाया यह सब
पर कहते हैं बारिश की बूंदों, या कोयल की कूकों में
उस लेखक की आवाज सुनाई देती है!
रचनाकाल : 22 अगस्त 2023

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