शुभकामना!
शुभ नया साल हो चाहता यही हूं दूं सबको शुभकामना पर भीतर जैसे कांटे-से उग आये हैैं क्षत-विक्षत स्वयं हूं औरों को भी करता ही जाता घायल मेरे भीतर यह किसकी आत्मा पैठ गई! संक्रमित देह को ही करता वायरस सुना था यही मगर मस्तिष्क और मन यह किसके वश में होता जाता है! कैसा है यह आक्रोश आत्मघाती तुला है करने पर जो सर्वनाश यह किसने अपने कब्जे में कर ली दुनिया! अन्याय सदा होते थे थोड़ा-बहुत मगर क्यों असहनीय अब होते जाते हैैं! जाने किस अनजाने भय से डरता हूं मैं मन ही मन में हे ईश्वर! सब कुछ हो शुभ-शुभ इस नये साल के अवसर पर शुभकामना यही दोहराता हूं। रचनाकाल : 1 जनवरी 2021