भीतर छिपा खजाना
देखकर अवाक हूं खजाने को
सोचा ही नहीं था कभी
छिपी होगी संपदा इतनी अपार
अपने ही अंतस में!
यूं ही चला आया था
पार करके बीहड़ पथ
खोज में अज्ञात की।
हासिल पर हुआ जो अकल्पनीय
बढ़ गई है बेचैनी
कैसे इसे बांटूं सारी दुनिया को!
लेकर नहीं जा सकता
बीहड़ पथ के उस पार
लाना होगा लोगों को ही
कांटों भरे रास्ते के इस पार
पाने को अपार यह धन संपदा।
सूझता ही नहीं लेकिन
कैसे तैयार करूं लोगों को
दुर्गम पथ पर चलने को
पार किये बिना जिसे
मिल ही नहीं सकता वह
खजाना बेशकीमती!
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