क्रूरता का बोलबाला
पहले मुझे लगता था व्यक्ति या कि संगठन ही होते हैैं आतंकवादी होती थी चिंतित जब दुनिया कि लग न जायें कहीं परमाणु बम हाथ में आतंकियों के मैं भी उनकी चिंता में शामिल था। सभ्य लेकिन दुनिया जब कर रही हो खात्मा एक पूरे देश का तब फर्क नहीं दीखता है तथाकथित सभ्यता और आतंकवाद में लगता है मुझको तो बेमानी सारा विकास यह अंत में तो पाशविक बल कर देता है सबकुछ तहस-नहस! जीतने मैं देना नहीं चाहता आतंकवाद को व्यक्तियों का हो या फिर देश का भरोसा यह पूरा है स्वेच्छा से आ गया जो निडर हो आतंकवादियों के सामने अहिंसा से करने को मुकाबला साथ में आ जायेंगे लोग मेरे अनगिनती शर्त है बस इतनी सी कमजोर पड़ने न पाये कहीं झुकने न पाये किसी शर्त पर हिंसा के सामने अहिंसा। पूछता हूं प्रश्न अपने आप से जैसे हिंसक लोग रखते जान को हथेली पर अहिंसा की खातिर मैं जान देने को भी क्या तैयार हूं? उत्तर लेकिन मिलता नहीं साफ-साफ दुविधा में दीखते हैैं मेरे जैसे सारे शरीफ लोग सोचते हैैं उनको बचाने कोई आयेगा मसीहा आसमान से क्रूरता का नाच नंगा जारी है कब्जे में करते ही जाते हैैं हिंसा के पुजारी सारी दुनिया को। रचनाकाल : 21 मार्च 2022