फिर एक नई शुरुआत
उद्देश्य गलत तो नहीं लगे थे मुझको
उनको पाने खातिर लेकिन मैंने
नहीं दिया साधन पर ज्यादा ध्यान
सही या गलत सामने
आया जो भी हाथ तरीका
उसको तर्कों से ठहराकर जायज
रखा हमेशा सिर्फ लक्ष्य पर ध्यान
पहुंच ही गया एक दिन
आखिर अपनी मंजिल पर।
लेकिन ये भारी खेल हो गया
कैसा मेरे साथ
दूर से समझा था
जिसको मैं सोना खरा
पास से खोटा कैसे निकल गया?
जिसके पीछे मैं
मंत्रमुग्ध सा भागा आया
नियम-कायदे-अनुशासन सब तोड़
अंत में मृग मरीचिका बन करके
वह मुझको ही छल गया!
नहीं है वक्त जरा भी मगर
ठहर कर करने को पछतावा
इतनी ज्यादा चाहे जीभ निरंकुश हुई
कि उससे ‘राम’ नाम भी लेते बनता नहीं
‘मरा’ का लेकिन करके जाप
साधना होगा मुझको अनुशासन
कुख्यात लुटेरे रत्नाकर से
जगप्रसिद्ध बन वाल्मीकि ऋषि
करना ही होगा अपने सब
दोषों का परिमार्जन
ऐसे जाने कितने महापुरुष
बनकर उदाहरण खड़े सामने मेरे
जब भी हो जाये अपने दोषों का भान
तनिक भी देर न हम तब करें
लौट कर सही मार्ग पर चलने में
लौटे हैैं कितनी बार
‘हिमालय’ जैसी करके भूल महात्मा गांधी
जीवन आधा हो जाने पर भी बर्बाद
विलासीपन से उबरे थे जब टालस्टाय
उम्र आधी हो जाने पर भी
कर सकता हूं मैं क्यों नहीं
शुरू फिर से उस पथ की यात्रा
जो लगता मुझको निर्दोष!
रचनाकाल : 12 मार्च 2022
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