Posts

Showing posts from April, 2023

साइकिल और मोटरसाइकिल

चलाता मैं साइकिल बनता हूं दीन-हीन लोगों की नजरों में झेलता हूं अपनों के बढ़ते दबाव को होते वे शर्मिंदा गिरता ही जाता है स्टेटस मुहल्ले में। मेरा भी कभी-कभी मन डगमगाता है लगता हूं सोचने कि ले लूं मोटरसाइकिल आफिस में इज्जत बढ़ जायेगी मानेंगे गरीब नहीं लोग आसपास के घण्टों का समय और शक्ति भी बच जायेगी लगती आने-जाने में जो तीस किलोमीटर दूर। लेकिन फिर लगता है बिगड़ता ही जाता है दिन-दिन जो पर्यावरण मैं भी हुआ शामिल यदि बढ़ाने में प्रदूषण तो अपनी ही नजरों में कैसे उठ पाऊंगा कविता फिर कैसे लिख पाऊंगा? इसीलिये झेलता हूं बढ़ते दबाव को मांगता हूं ईश्वर से शक्ति देना टिकने की डिगने नहीं देना मेरे मन के विश्वास को कि एक दिन कभी न कभी मेरी यह मेहनत रंग लायेगी दुनिया मेरे काफिले में शामिल हो जायेगी। अपने इसी सपने के बल पर मैं चलाता हूं साइकिल टालता ही जाता हूं लेना मोटरसाइकिल। रचनाकाल : 22 अप्रैल 2023

नया नजरिया

लगा रखे हैं मैंने अपने कानों में कन्वर्टर कोई गाली देता है मुझको तारीफ सुनाई देती है कहता हूं जब शुक्रिया अचानक भाव बदल जाता है उसके चेहरे का दुश्मनी छोड़ दोस्ती बढ़ाने लगता है। मैंने आंखों में लेंस लगाया ऐसा सारी चीज दिखाई देती मुझे सकारात्मक करता कोई निंदा तो ऐसा लगता है मेरे भीतर की दूर बुराई करके वह मुझको सोने सा खरा बनाने खातिर कोशिश करता है। कोशिश कर-करके मैंने अपना गला बनाया ऐसा जब गुस्से में कोई कड़ी बात भी कहता हूं सुनने वाले को लगता है सुमधुर अभिवादन करता हूं जब उसी भाव से उत्तर देता है वह तो मेरा सारा गुस्सा ठण्डा पड़ जाता है। देखने और कहने-सुनने का अपनाया है जब से नया नजरिया सारी चीजें बदल गई हैं  बेहतर बनता मैं  दुनिया भी मेरे आसपास की बेहतर बनती जाती है। रचनाकाल : 15 अप्रैल 2023

हद के पार

ऐसा नहीं कि सुख-सुविधा में पूर्ण शांति से बैठ नहीं मैं लिख पाता पर बुरी तरह थककर होता जब चूर, उस समय दौड़ शुरू करने में जो मिलता है अनुपम दर्द नहीं हो पाती उसकी तुलना किसी तरह से भी इसलिये छोड़ कर लिखना, पहले निपटाता हूं जोखिम वाले काम सभी जब लगने लगती है झपकी मुश्किल हो जाता पकड़े रखना पेन-कापी तंद्रावस्था में तब जो कुछ भी लिखता हूं वह स्वप्नलोक सा लगता है। बचपन में छिपकर रखवाले की नजरों से पीटे जाने का रिस्क उठा खाने में वह कच्चे अमरूद मजा जो आता था वह स्वाद बिना मेहनत के फल में कभी नहीं मिल पाता था। अब उसी तरह से नजर बचाकर मृत्यु देव से उनके ही अधिकार क्षेत्र से अनुपम-दुर्लभ रत्न चुराकर लाता हूं मिलता है सुख जो अतुलनीय उसके कारण चिंता होती है नहीं किसी दिन पकड़ लिया तो अपने कब्जे में जबरन ले जायेंगे! रचनाकाल : 13 अप्रैल 2023

सपने

कल अनायास अहसास हुआ हो चुकी देर बेहद शायद सपने जो अब तक स्थगित रहे यह सोच, समय जब आयेगा अनुकूल उन्हें कर लूंगा पूरा निकल गया लम्बा अरसा जीवन के झंझावातों में। अब आया जब अनुकूल समय पोटली खोल कर देख रहा हूं सपनों की कर सकूं ताकि पूरा उनको पर सदमा लगा देखकर यह सपने तो सब जीवाश्म बन चुके पथरा कर! झटका यह इतना भारी है लग रहा कि जिसको पाने खातिर गुजर गया आधा जीवन वह मृग मरीचिका जैसा था! नहीं, नहीं! सब खत्म हुआ है नहीं अभी कीमत तो बड़ी चुकाई है, पर समझ गया अनुकूल समय जैसा कुछ होता नहीं शुरू करना है फिर से, एक नया संघर्ष मर चुके सपने जीवित करने का कर पाने पर ही पूर्ण उन्हें जिंदगी सफल हो पायेगी । रचनाकाल : 11 अप्रैल 2023

चक्रव्यूह

मैं नहीं जानता कैसे निकलूं चक्रव्यूह से गुस्से के इसलिये नहीं घुसने की उसमें भरसक कोशिश करता हूं आसान समझता था खुद को वश में रखना पहले, लेकिन जब शुरू किया अपने पर रखना नजर पता तब चला कि इतना सरल नहीं अपनी आदतें बदल पाना इतनी बलशाली होती हैं इंद्रियां कि मन को कर देतीं मजबूर कि उनकी रुचियों के अनुकूल तर्क वह गढ़ा करे। जब देखा गुस्से को भी अपने जायज ठहराता दिमाग हो गया तभी चौकन्ना होकर जब तटस्थ सोचा तो पाया कारस्तानी सारी मेरे मन की है। इसलिये नहीं अब करता कभी भरोसा अपने मन पर उसको अनुशासन के ढर्रे पर रखता हूं मानक तय जो कर रखा हमारे पुरखों ने मजबूर स्वयं को करता उन पर चलने को करता प्रयास मौका ही गुस्से को न मिले आने का जिसको नहीं भेद पाने की आती कला मुझे उस चक्रव्यूह में घुसने से बचने की कोशिश करता हूं। रचनाकाल : 8 अप्रैल 2023

नया अर्थ

जब कहता था मैं सीखूंगा संगीत हिकारत से तब ऐसे मुझे देखते थे सब बड़े-बुजुर्ग कि हिम्मत हो पाती थी नहीं सीखने की सरगम। कविता लिखना जब शुरू किया, तब होता था संकोच कि कोई पूछे क्या करता हूं, कैसे कहूं कि कविता लिखता हूं आ जाती थी मुस्कान वक्र तब चेहरे पर, जो पूछा करता भाव जताता ऐसा जैसे कोई मैं अपराध किया करता हूं। मुश्किल से मैंने राह बनाई कविता की बदली लोगों के भीतर की धारणा कि केवल भाट या कि दरबारी चारण लिखते नहीं कवित्त बदल सकती है कविता लोगों के जीवन को भी हो सकती है पूजा की तरह पवित्र, नहीं वह वस्तु मनोरंजन की है। इच्छा है मन में तीव्र सीखने की फिर से संगीत चाहता हूं बदले लोगों की इसके बारे में धारणा अमीरों का मन बहलाने खातिर यह नहीं बजाने-गाने की है वस्तु सिर्फ कोठों पर ईश्वर को इसके जरिये पाया जा सकता है। अनगिनत कलाएं ऐसी हैं जिनको विलास-भोगों से करके दूर आम जनजीवन तक ले आना है, उनके पीछे का अर्थ बदलना है। रचनाकाल : 7 अप्रैल 2023

आदत सुख-दुख की

सुख हो या दुख कुछ दिन में उसकी आदत सी पड़ जाती है हो चीज नई कितनी भी पर कुछ दिन में तो हर चीज पुरानी पड़ ही जाती है। सुख नहीं सुखद रह पाता हरदम पहले सा दुख का भी दंश निकल जाता है कुछ दिन में कितनी भी लगे असंभव कोई परिस्थिति पर अपने ऊपर जब आती है तो सहने की चाहे जैसे भी क्षमता भी आ ही जाती है। इसलिये नहीं सुख के क्षण में मैं फूला नहीं समाता हूं दुख में रखता हूं सब्र, दीन बन नहीं चीखता-चिल्लाता आती है दिन के बाद रात, फिर दिन जैसे सुख-दुख भी बारी-बारी आते-जाते हैं मैं खुद से ही होकर तटस्थ, बस उन्हें देखता रहता हूं। रचनाकाल : 6 अप्रैल 2023

सम्मान

जब भी होता सम्मान स्नेह के बोझ तले दब जाता हूं कोशिश करता हूं चुका सकूं यह कर्ज जल्द से जल्द मुझे हकदार मान जो दिया गया सम्मान उसे करके समाज की सेवा ज्यादा से ज्यादा मय ब्याज अदा कर शीघ्र उऋण हो सकूं इसी चिंता में दिन भर रहता हूं। सम्मान बढ़ा देते हैं जिम्मेदारी डर भी लगता है आ जाय नहीं अभिमान कि जो असली कद है उसके बजाय अपनी विशाल प्रतिमाओं को ही समझ न बैठूं असली खिसक न जाय जमीन कहीं पैरों के नीचे की उड़ने न लगूं मैं कहीं हवा में इसीलिये सम्मानों से बचने की कोशिश करता हूं फिर भी जब जबरन मिलता है जी-जान लगाकर खुद को ज्यादा से ज्यादा निर्मल करने लग जाता हूं सूरज की किरणों को जैसे दर्पण करता प्रत्यावर्तित कर सकूं उसी के जैसा ही मैं भी अर्पित सम्मान उसी जन-मानस को जो मुझको देता है समाज रह जाय नहीं कुछ शेष सिवा कर्मों के मेरे, पास मेरे। रचनाकाल : 2-5 मार्च 2023