हद के पार


ऐसा नहीं कि सुख-सुविधा में
पूर्ण शांति से बैठ नहीं मैं लिख पाता
पर बुरी तरह थककर होता जब चूर, उस समय
दौड़ शुरू करने में जो मिलता है अनुपम दर्द
नहीं हो पाती उसकी तुलना किसी तरह से भी
इसलिये छोड़ कर लिखना, पहले
निपटाता हूं जोखिम वाले काम सभी
जब लगने लगती है झपकी
मुश्किल हो जाता पकड़े रखना पेन-कापी
तंद्रावस्था में तब जो कुछ भी लिखता हूं
वह स्वप्नलोक सा लगता है।

बचपन में छिपकर रखवाले की नजरों से
पीटे जाने का रिस्क उठा
खाने में वह कच्चे अमरूद मजा जो आता था
वह स्वाद बिना मेहनत के फल में
कभी नहीं मिल पाता था।

अब उसी तरह से नजर बचाकर मृत्यु देव से
उनके ही अधिकार क्षेत्र से अनुपम-दुर्लभ
रत्न चुराकर लाता हूं
मिलता है सुख जो अतुलनीय उसके कारण
चिंता होती है नहीं किसी दिन पकड़ लिया तो
अपने कब्जे में जबरन ले जायेंगे!
रचनाकाल : 13 अप्रैल 2023

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक