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Showing posts from December, 2022

नया साल

सपना मैंने यह क्या देखा बीतता जा रहा नया साल भी पिछले वर्षों जैसा ही? भयभीत अचानक होकर जब उठता हूं तो यह पाता हूं यह भोर सुहानी नये साल के पहले ही तो दिन की है! है देर अभी भी नहीं हुई सबकुछ फिर से हो सकता है आरम्भ सिरे से नये गलतियां हो सकती हैं ठीक मिला है नये जनम के जैसा ही यह नये साल का पहला दिन मैं नहीं चाहता हर्गिज इसे गंवाऊं फिर से नये जोश के साथ जुट रहा हूं करने में एक नई शुरुआत कोटिश: ईश्वर का आभार कि उसने मौका फिर से एक दिया! रचनाकाल : 1 जनवरी 2023

खजाना भीतर का

करता था पहले बाहर खोज खजाने की सोना-चांदी, हीरा-मोती लगते थे सबसे मूल्यवान पर जबसे भीतर खोज शुरू की इतने रत्न मिले अद्भुत बाहर के सब तुच्छ दिखाई देते हैैं। बेशक आसान नहीं लाना भीतर के रत्नों को बाहर जो जितनी मेहनत करता है उतना लेकर आ पाता है संगीत, गीत या चित्रकला भीतर के ही सब मोती हैं  जो साधक बाहर लाते हैैं। मैं भी कविता के रत्नों को लाने की कोशिश करता हूं पर इसकी खातिर तन-मन अपना निर्मल रखना पड़ता है गलतियां ढूंढ़ना छोड़ दूसरे लोगों की खुद में ही रमना पड़ता है। पर मिलती है जब झांकी भीतर के अनमोल खजाने की तब कदम खिंचे जाते हैैं खुद ही अपने ही मन के भीतर हो जाते हैैं तल्लीन साधना में जब हम बन जाते हैैं सबसे अमीर इस दुनिया में हो जाती है सुनहरी हमारी दुनिया तब। रचनाकाल : 26 दिसंबर 2022

पूर्ण-अपूर्ण

ऊर्जा अपार थी जब तन में तब ज्ञात नहीं थी दिशा कि चलना किस पथ पर अब राह पता है, किंतु थक चुका इतना दूभर होता जाता चल पाना भी एक कदम। यह कैसा नियम निराला है जब होते अनुभवहीन हमें अनुभव आकर्षित करता है पर मिलता है जब तक अनुभव तन साथ छोड़ने लगता है! शायद है यही चुनौती मानव जीवन की सबकुछ मिल पाता नहीं किसी को कभी हमारे ऊपर ही निर्भर है यह खुश हों कि ग्लास आधी है भरी हमारी या यह देख दुखी हों आधी है वह खाली सबको सदा अधूरेपन में जीना पड़ता है! रचनाकाल : 18 दिसंबर 2022

दिशाहीन रफ्तार

जब सबकुछ लगता हो खिलाफ हो जाय असम्भव आगे बढ़ना तिल भर भी मैं कदम जमाये रखता हूं मजबूती से। बेशक डर लगता है कि कहीं जड़ पत्थर तो बन गया नहीं! पर करता हूं संवरण लोभ बहती धारा संग बहने का चलते जाना ही सिर्फ बिना सोचे-समझे हो सकती नहीं निशानी हर्गिज उन्नति की है सही राह पर चलना कछुए जैसा भी मंजूर मुझे खरगोश सरीखी सिर्फ तेज गति पाने को मैं नहीं दौड़ सकता ढलान की फिसलन मेें। रचनाकाल : 12 दिसंबर 2022