दिशाहीन रफ्तार
जब सबकुछ लगता हो खिलाफ
हो जाय असम्भव आगे बढ़ना तिल भर भी
मैं कदम जमाये रखता हूं मजबूती से।
बेशक डर लगता है कि कहीं
जड़ पत्थर तो बन गया नहीं!
पर करता हूं संवरण लोभ
बहती धारा संग बहने का
चलते जाना ही सिर्फ बिना सोचे-समझे
हो सकती नहीं निशानी हर्गिज उन्नति की
है सही राह पर चलना कछुए जैसा भी मंजूर मुझे
खरगोश सरीखी सिर्फ तेज गति पाने को
मैं नहीं दौड़ सकता ढलान की फिसलन मेें।
रचनाकाल : 12 दिसंबर 2022
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