उल्लास उधारी का


मैं खूब मनाऊं जश्न, चाहता तो हूं पर
मेहनत ही इतनी नहीं किया, सो सकूं बेच कर घोड़े
इतना नहीं मूलधन पास परिश्रम का मेरे
मिल सके ब्याज के तौर ताकि उल्लास मुझे भरपूर
छटपटा रहा कि कैसे पर्व मनाऊं होली का!
लेना उधार तो कभी न रहा पसंद, किंतु
चलती है दुनिया जैसे आज उधारी पर
मैं भी खुद से चाहता कि ले लूं कुछ उल्लास उधार
स्वयं से कर लूं वादा उत्सव आज मनाने के बदले में
वर्ष भर खूब करुंगा मेहनत, खुद के प्रति रह कर ईमानदार
धरती को जो पहुंची है क्षति, करके उसकी भरपाई
पहले से थोड़ा बेहतर यह विश्व बनाऊंगा!
त्यौहार बिना उल्लास कहीं रह जाय नहीं सूना-सूना
इसलिये स्वयं से करके ढेरों वादे
अपने ही हाथों में खुद को गिरवी रखता हूं
होली का जश्न मनाता हूं।
रचनाकाल : 7 मार्च 2023

Comments

  1. उम्दा रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी

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  2. हृदय स्पर्शी रचना, सार्थक सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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