खजाना भीतर का
करता था पहले बाहर खोज खजाने की
सोना-चांदी, हीरा-मोती
लगते थे सबसे मूल्यवान
पर जबसे भीतर खोज शुरू की
इतने रत्न मिले अद्भुत
बाहर के सब तुच्छ दिखाई देते हैैं।
बेशक आसान नहीं लाना
भीतर के रत्नों को बाहर
जो जितनी मेहनत करता है
उतना लेकर आ पाता है
संगीत, गीत या चित्रकला
भीतर के ही सब मोती हैं
जो साधक बाहर लाते हैैं।
मैं भी कविता के रत्नों को
लाने की कोशिश करता हूं
पर इसकी खातिर तन-मन अपना
निर्मल रखना पड़ता है
गलतियां ढूंढ़ना छोड़ दूसरे लोगों की
खुद में ही रमना पड़ता है।
पर मिलती है जब झांकी
भीतर के अनमोल खजाने की
तब कदम खिंचे जाते हैैं खुद ही
अपने ही मन के भीतर
हो जाते हैैं तल्लीन साधना में जब हम
बन जाते हैैं सबसे अमीर इस दुनिया में
हो जाती है सुनहरी हमारी दुनिया तब।
रचनाकाल : 26 दिसंबर 2022
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