आदत सुख-दुख की


सुख हो या दुख कुछ दिन में उसकी आदत सी पड़ जाती है
हो चीज नई कितनी भी पर कुछ दिन में तो
हर चीज पुरानी पड़ ही जाती है।
सुख नहीं सुखद रह पाता हरदम पहले सा
दुख का भी दंश निकल जाता है कुछ दिन में
कितनी भी लगे असंभव कोई परिस्थिति पर
अपने ऊपर जब आती है तो
सहने की चाहे जैसे भी क्षमता भी आ ही जाती है।
इसलिये नहीं सुख के क्षण में मैं फूला नहीं समाता हूं
दुख में रखता हूं सब्र, दीन बन नहीं चीखता-चिल्लाता
आती है दिन के बाद रात, फिर दिन जैसे
सुख-दुख भी बारी-बारी आते-जाते हैं
मैं खुद से ही होकर तटस्थ, बस उन्हें देखता रहता हूं।
रचनाकाल : 6 अप्रैल 2023

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