कायर
जब भी छिड़ता है युद्ध कहीं
कांप उठता हूं मैं मन ही मन
गोलियों-मिसाइलों का धमाका
महसूस होता मुझे भीतर तक
और मरता है जब किसी भी पक्ष से कोई
तो दहल जाता हूं बेतरह।
कुछ लोगों की तरह मुझे भी
शक होता है कभी-कभी
कि मैं कायर तो नहीं हूं!
पर बहुतेरे तर्कों के बाद भी
मैं नहीं कर पाता खुद को
लड़ने के लिए तैयार
गांधीजी का अहिंसक सत्याग्रह ही
लगता है मुझे अपने अनुकूल
माना था लोहा जिसका दुनिया ने भी।
लेकिन जब देखता हूं
हथेली पर जान रखे लोगों को
लड़ते हुए युद्ध में
पूछता हूं प्रश्न अपने आप से
इतनी ही क्या शिद्दत से
अहिंसा की खातिर मैं भी
खुद को लगा पाता हूं दांव पर!
रोकने की खातिर युद्ध दुनिया में
जुल्मी तानाशाहों के विरोध में
रखता हूं मैं जान क्या हथेली पर?
युद्धों का दुनिया में होना ही
करता है यह साबित कि मैं
सच्चा नहीं बन पाया
अनुयायी गांधी का
झंडा बुलंद नहीं
कर पाया अहिंसा का।
होता हूं तब शर्मिंदा
लगता है भीतर से
सचमुच मैं कायर हूं।
रचनाकाल : 28 फरवरी 2022
सुंदर मौलिक विचार । मन का स्पंदन और भावनाओं का प्रेषण व्यक्त कर आपने खुद को संभाला ही होगा। लिखते रहिए ।
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