प्रार्थना


मैं नहीं जानता क्या मांगूं
प्रार्थना अकारण है मेरी
लेकिन जब गिरूं कभी अपने आदर्शों से
हे ईश्वर! मुझको आकर जरा बचा लेना।

जब स्वार्थ भावना के हो जाऊं वशीभूत
सिर झुक न सके जब अहंकार बढ़ जाने से
जब बनने लगूं किसी के भी दुख का कारण
हे ईश्वर! मुझको दारुण दुख से भर देना

जब जलूं क्रोध की ज्वाला में
बदले की हो भावना प्रबल
जब हावी हो जाये मन पर तामसी वृत्ति
हे ईश्वर! मेरी सारी ताकत हर लेना

जब भला किसी का भी मुझसे यदि हो न सके
जब उदरपूर्ति ही जीवन का बन जाय ध्येय
धरती पर बनने लगूं बोझ उसके पहले
हे ईश्वर! मुझको अपने पास बुला लेना।
रचनाकाल : 22 दिसंबर

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