संभावनाओं का दोहन
पहले मैं डरता था
सबसे अधिक मानवों से
सबसे अधिक लगता था क्रूर वह
तोड़ता था नियमों को प्रकृति के
तुला था जो सर्वनाश करने को धरती का
पा ली है लेकिन मैंने
थाह उसके भीतर की
नीचे वह जितना गिर सकता है
ऊंचा भी उठ सकता उतना ही
छिपी हैैं अपार उसके भीतर संभावनाएं
जुट गया हूूं अब मैं निखारने को
उसके भीतर की उज्ज्वलता को
बुद्धिमान प्राणी वह बेशक है दुनिया का
चाहता हूं लाभ मिले उसकी बुद्धिमानी का
सचराचर जगत को
बिना किसी का भी विनाश किये
करे वह समृद्ध सारी दुनिया को।
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