चुनौतियों का खजाना
कांपती है नाव मेरी
प्रबल लहरों के थपेड़े से
पहुंचता हूं बीच जब मझधार में
मन नहीं करता मगर
तट पर खड़े रहकर नजारा देखने का।
जानता हूं है कठिन बेहद
शिखर पर घर बनाना
सतत लेकिन घिरा रहना चाहता हूं
आपदाओं से
रोमांचकारी जिंदगी का
लग चुका चस्का
कि डर लगता चुनौतीहीन जीवन से।
है परम यह सौभाग्य
पग-पग पर चुनौती के सुअवसर
पड़े मिलते हैैं
कि दुनिया भागती है
छोड़ कर जिस खजाने को
सफलता, सुरक्षा की चाह में
मैं भागकर उल्टी दिशा में
कठिन अवसर की अतुल उस संपदा
से हो लबालब
बना लेता हूं स्वयं को
धनी सबसे व्यक्ति दुनिया का।
Comments
Post a Comment