अलौकिक शक्ति


जैसे-जैसे ढलता दिन
चुकती ही जाती हैैं शक्तियां
होते-होते रात, मृतप्राय सा हो जाता हूं
रात भर की नींद लेकिन
लबालब फिर कर देती शक्तियों से
होते ही भोर जुट जाता हूं
फिर से अपने काम में।

चाहता हूं चलता रहे
यही क्रम निरंतर चिरकाल तक
लेकिन अब रोज सुबह
होती जाती हैैं कम शक्तियां
थकता ही जाता हूं जल्दी अब रोज-रोज
तो क्या यह आहट है मौत की!

जीते-जी लेकिन नहीं रुक सकता
देने पर भी जवाब देह के
चलता हूं बल पर आत्मशक्ति के
खुलता ही जाता है द्वार नया
अलौकिक शक्तियों से भरी दुनिया का!
रचनाकाल : 25 दिसंबर 2020

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