पथराती संवेदना


ऐसा तो नहीं है कि
आ गई है दुनिया में
खुशहाली आजकल
बढ़ती ही जा रही
समाज में असमानता
बढ़ रहा है लोगों में आक्रोश भी
सूझते फिर क्यों नहीं हैैं शब्द मुझे
व्यक्त करने इस भयावह मंजर को?
पथराता जा रहा मन
खत्म होती जाती संवेदना
वैचारिक लड़ाई में भी
बढ़ती ही जाती है क्रूरता
बनते ही जाते हैैं
पत्थर दिल लोग सब
खत्म होती जाती है मानवता।
ऐसा भयानक समय
आया है मेरे जो हिस्से में
हाथों में हाथ रख
एक क्षण भी बैठना
भयानक अपराध है
सूझता ही नहीं पर
कैसे लड़ाई लडूं
बनता ही जाता हूं
हिस्सा इसी सिस्टम का
सुन्न होती जाती संवेदना
पथराती दुनिया में
मैं भी पथराता ही जा रहा।

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