मुख्यधारा के खिलाफ


आरामदेह जरूर लगती है
घाटियों की यात्रा
फिसलते हुए ढलान की ओर
होता है तीव्रगामी विकास का आभास
पर अपूर्व है शिखर की यात्रा का आनंद
इंच-इंच बढ़ना भी आगे जहां
होती है वास्तविक प्रगति
देना चाहता हूं यू-टर्न
विकास की धारा को
पर बहाव इतना तेज है
कि पैर उखड़ जाते हैैं बार-बार
सीमित हैैं बहुत मेरी शक्तियां
लेकिन विकल्प नहीं दूसरा
बढ़ता हूं ऊपर की ओर इंच-इंच रोज
रोकता हूं लोगों को
भागते ही जा रहे जो नीचे ढलान में
ताकत है उनके पास जबर्दस्त
फेंक दिया जाता हूं बार-बार हाशिये पर
लेकिन उठता हूं हर बार धूल झाड़ कर
सहकर भी उपहास
लड़ता मुख्यधारा से समाज की।
रचनाकाल : 27 दिसंबर 2020

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