धोखा मेरे साथ
धोखा हुआ भयानक मेरे साथ
मोती मैंने बहुत चुने थे
चकाचौंध में देते थे जो सूरज को भी मात
लेकिन यह क्या हुआ कि सूरज जैसे डूबा
चमक चली गई साथ!
चुनता रहा जिन्हें जीवन भर
क्या वे कांच के टुकड़े थे!
जीवन के इस सांझ समय
क्यों लगता ऐसा, रह गया खाली हाथ!
रहा सजाता रूप-रंग इस काया का
श्रृंगार किया बहुतेरा लेकिन
अंतरतम को देख न पाया
छूट गई जब आत्मा तन से
मुट्ठी भर रह गई राख!
कोशिश नहीं किया सुनने की
बातें अपने अंतर्मन की
जीता रहा दिखावे में ही
फूट गया जब गुब्बारा तो
कुछ भी बचा न पास!
हुआ भयानक धोखा मेरे साथ।
रचनाकाल : 26 दिसंबर 2020
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