स्वैच्छिक दुख-कष्ट


पहले मैं मानता था
खुद को सौभाग्यशाली
नहीं सहने पड़े मुझे दारुण दुख
स्वेच्छा से सहते हुए
छोटे-छोटे दुख-कष्ट
छोटी-छोटी चोटियों के
शिखरों तक पहुंच कर
मन ही मन होता खुश
कर लेता अपने को संतुष्ट
लेकिन देखा जब से
दारुण दुख की अंतहीन चोटियों पर
चढ़ते हुए लोगों को मजबूरी से
बेहद व्याकुल है मन
भूल नहीं पाता हूं
असहनीय पीड़ा से उपजी हुई
मर्मांतक चीखों को
अपना सौभाग्य मुझे
लगता है दुर्भाग्य
चाहता हूं स्वेच्छा से
बिना चीखे-चिल्लाए
सहन करूं असहनीय दुखों को
ईसा की तरह लाद कांधे पर
कांटेदार सूली को
चढ़ूं उन शिखरों पर
दारुण दुखों के पहाड़ की
दीखती है चोटी जिसकी अंतहीन
असहनीय दुख सहने वालों को
मिल सके ताकि थोड़ी सांत्वना
स्वेच्छा से अपने दुख सहने की।

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