प्रतिरोध का तरीका
पहले मेरा मन इतना ज्यादा नाजुक था
छोटी-छोटी बातों से भी आहत हो जाया करता था
जो भी चाहे पहुंचा सकता था ठेस मुझे
बचने खातिर इससे सोचा, जैसे गुलाब
कांटे पैदा कर अपनी रक्षा करता है
मैं भी बनकर बाहर से कांटेदार
करूं अपने कोमल मन का बचाव
पर कांटे चुभें किसी को भी
घायल मेरा मन होता था
इसलिये बचाने खातिर अपने मन को मैं
कछुए सा बनना सीख गया
चमड़ी इतनी मोटी कर ली
करता है जब कोई प्रहार
मैं खुद को अपने भीतर सिमटा लेता हूं
सह लेता सारे अपशब्दों को निर्विकार
इस तरह पार करता जाता हूं
बीहड़ रेगिस्तानों को।
रचनाकाल : 13 नवंबर 2023
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