रूपांतरण


मैं नहीं गंवाता समय, खोज में
दुनिया में अच्छाई की
जो होता है उपलब्ध उसी से
अपने सपनों की दुनिया
रचने की कोशिश करता हूं
जो समय मिला है मुझको
अपने हिस्से में जीने का
हो वह कितना भी टूटा-फूटा
मैं खण्डहरों को कच्चा माल समझ कर
उनसे भव्य इमारत रचता हूं।
मिल जायें यदि सारी चीजें
आदर्श रूप में दुनिया में
करने को क्या रह जाता है
फिर हमको अपने जीवन में!
इसलिये बुराई को ही मैं
मेहनत करके घनघोर
बदलता जाता हूं अच्छाई में
आखिर जो विष था
सारी दुनिया की खातिर
पीकर उसको ही तो शिवशंकर
नीलकण्ठ कहलाये थे।
रचनाकाल : 1 नवंबर 2023

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