सिलसिला


कितना भी हो विपरीत समय
मैं त्यौहारों को विधि-विधान
उल्लास-जोश के साथ मनाया करता हूं
इनके जरिये हम जुड़ते हैैं
प्रााचीनकाल की उन प्रेरक घटनाओं से
जो देती हैैं संदेश कि जीवन कैसा हो
हासिल हो पाये या कि नहीं
पर लक्ष्य जिंदगी जीने का तो कोई हो!
इसलिये मिली हैैं स्मृतियां जो
पुरखों से हमें विरासत में
जीवंत बनाए रखने की उनको, मैं कोशिश करता हूं
यह डोर अगर जो टूट गई
आने वाली पीढ़ियां हमारी जड़विहीन हो जायेंगी
सिलसिला हजारों सालों से चलता आया जो
उसे मिटाने खातिर हमको माफ नहीं कर पायेंगी।
रचनाकाल : 12 नवंबर 2023

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