हंसी


जब से मैंने कला सीख ली हरदम हंसते रहने की
दुनिया ही बदल गई अब सबकुछ उजला-उजला दिखता है
जिन लोगों में पहले मैं हरदम नुक्स निकाला करता था
उन लोगों में भी अब मुझको सब अच्छा-अच्छा दिखता है।
कोई भी क्रोधित कर सकता था पहले मुझको, जब चाहे
चिंगारी पड़ते ही मैं सूखी घास की तरह जलता था
अब सबके गुस्से को मैं हंसकर ठण्डा करता रहता हूं
जो सूख चुके हैं भीतर से, उनको हंस-हंस कर तरल बनाता रहता हूं।
बेशक मेरे भीतर भी है खारापन गहन समंदर का
पर बादल बनकर दावानल को बुझा सकूं
इसलिये तपा कर खुद को, बन कर भाप, रसातल से चल कर
हर साल हिमालय तक की यात्रा करता हूं
सबसे अच्छाई लेकर सबको गुरु मान
मैं मानसून की तरह, बादलों सा छाकर
बरसात हंसी की, दुनिया में लाने की कोशिश करता हूं।
रचनाकाल : 17 जून 2023

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