निष्पक्ष न्याय
अनथक मेहनत खेतों में करता जो किसान
लहलहा उठी फसलों को उसकी
बाढ़ बहा ले जाती है
या सूखा चट कर जाता है
तब उसका वह दारुण विलाप
बेहद मर्मांतक होता है।
इससे भी लेकिन मर्मांतक
मुझको लगता है वह क्षण जब
लॉटरी किसी की लगती है
मिल जाता छप्परफाड़ खजाना
बिना किसी मेहनत के ही।
घनघोर परिश्रम का फल देकर
किसी और को ईश्वर क्या
औसतन न्याय करने की कोशिश करता है?
बेशक मुझको मालूम नहीं हैं
नियम सृष्टि के सारे पर
लगता है जो अन्याय उसे
चुपचाप देखना कायरता सा लगता है
इसलिये नहीं मैं लेता हूं
घनघोर परिश्रम का भी फल
करता हूं दर्ज अपना विरोध
भिखमंगों जैसा करे कोई
बर्ताव किसी मानव से मुझको
हर्गिज यह मंजूर नहीं
फिर चाहे वह ईश्वर ही हो।
इसलिये बंद करता हूं अब स्तुतिगान
चुनौती देता हूं ईश्वर को
करके सबसे न्याय दिखाये
जो भी देना हो, वह दे गरिमा के साथ
बहाना करे न मिल जायेगा अगले जनम
नहीं हैं अनपढ़ अब हम या कि अंधविश्वासी
ईश्वर अगर चाहता है कि उसे हम मानें
तो बनना ही होगा तार्किक
करना होगा ऐसा न्याय
दिखे जो सब लोगों को साफ-साफ।
रचनाकाल : 12-13 सितंबर 2022
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