शब्दहीन कविता


जब नहीं सूझता लिखने को कुछ कभी-कभी
अक्सर व्याकुल हो उठता हूं
उस व्याकुलता के चक्कर में
जबरन जब कुछ भी लिखता हूं
वह इतना नकली लगता है
होने लगती है खीझ स्वयं पर बुरी तरह।
बेशक मन में है हसरत बहुत पुरानी यह
लिख पाऊं ऐसी कविता जिसमें
नजर न आये कागज पर एक भी शब्द
जिस तरह तरंगें रहकर भी हरदम अदृश्य
मन को उद्वेलित करती हैैं
मेरी कविता भी बिना किन्हीं शब्दों के ही
हर मन को कर दे उद्वेलित
लिख पाना तब सचमुच होगा सम्पूर्ण सफल।
मन चंचल लेकिन इतना ज्यादा है कि अभी
सागर जैसा गम्भीर गहन बन पाना दुष्कर लगता है
कुछ कहे बिना भी सारी बातें कह जाऊं
यह क्षमता हासिल कर पाना फिलहाल असम्भव लगता है
सब भले करें तारीफ सारगर्भित हैैं सुंदर शब्द मेरे
पर मुझे पता है मेरे भीतर कितनी सारी कमियां हैैं
लिख पाने खातिर शब्दहीन कविता कोई
सैकड़ों मील का सफर अभी तय करना है।
रचनाकाल : 2-5 सितंबर 2022

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