इंसान और भगवान

एक दिन ठन गई  मेरी ईश्वर से ही
दरअसल करके घनघोर मेहनत मुझे कुछ मिला जब नहीं
मैंने जिद यह पकड़ ली झुकूंगा नहीं
करके तप जैसे घनघोर प्राचीन ऋषि-मुनि
विवश करके ईश्वर को वरदान पा लेते थे
मैं भी इतना परिश्रम करूंगा कि मजबूर हो जाय ईश्वर
कहे मुझसे वरदान कुछ मांग लो
तब कहूंगा मुझे चाहिये कुछ नहीं
एक तुम ही नहीं इतने खुद्दार हो सबको देते फिरो
मैं भी मानव सही, किंतु खुद्दार तुमसे हूं कुछ कम नहीं
उस समय क्या नहीं मेरा दर्जा भी बढ़ जायेगा
एक इंसान ईश्वर के समकक्ष हो जायेगा!

तो क्या काबिल है इंसान इतना कि भगवान भी बन सके?
मैंने अचरज से देखा कि भगवान की खुशियों का तो ठिकाना न था
जिस तरह हर पिता चाहता पुत्र उससे भी आगे बढ़े
तो क्या ईश्वर की इच्छा है इंसान उससे भी भगवान ज्यादा बने?

नींद  इतने में ही खुल गई किंतु अब तक अचंभित था मैं
कितनी क्षमता है हम मानवों में कि कर सकते क्या कुछ नहीं
किंतु खुद से ही हो करके गाफिल रसातल चले जा रहे
चाहता है ये ईश्वर कि हीरा बनें हम मगर
कोयला बन के ही बस रहे जा रहे!
रचनाकाल : 4 सितंबर 2022

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