खतरों का रोमांच


डर लगता था अज्ञात भंवर में कूदूं तो
हश्र न जाने क्या होगा!
योजना बनाकर जीना लेकिन
इतना नीरस लगता है
मैं अक्सर तूफानों से भिड़ने
सागर में चल पड़ता हूं।
बेशक हैैं खतरे जोखिम के अनगिनती
डूबा अगर कभी तो
मेरी ही होगी सारी जिम्मेदारी
पर इतने मोती जुटा चुका हूं अब तक जोखिम के बल पर
खतरों के ही संग रहना अब प्रिय लगता है।
दरअसल मुझे यह पता चल चुका है रहस्य
खतरों का भी होता है अपना ही स्वभाव
छल-कपट जरा भी नहीं सहन कर पाते वे
नि:स्वार्थ भाव से ही रहना संभव है उनके बीच
इसलिये जो भी उनसे पाता हूं, दुनिया को अर्पित करता हूं
रहता खतरों से घुल-मिल कर, रोमांचक जीवन जीता हूं।
रचनाकाल : 29 अगस्त 2022

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