अहं ब्रह्मास्मि


जब से मैंने समझ लिया है गणित, सृष्टि के नियमों का
सब दूर हो गईं चिंताएं, बेफिक्र हमेशा रहता हूं
भय नहीं कि कोई ठग लेगा या लूटेगा
मेरे भीतर है छिपा खजाना ऐसा जिसको
कितना भी लूटे कोई, हर्गिज वह कभी न कम होगा
जिस तरह शून्य से कितना भी ले ले कोई
पर शून्य हमेशा बचता है
मैं पूर्ण ब्रह्म हूं ऐसा जिसको
पूरा भी ले ले कोई तो
पूर्ण ब्रह्म ही बचता है।
रचनाकाल : 28 अगस्त 2022

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