दृढ़संकल्प
मैं नहीं मारता जान-बूझकर अपने पैर कुल्हाड़ी
आती पर जब आपदा, नहीं फिर उसको पीठ दिखाता हूं।
दरअसल विघ्न-बाधाओं से मैं पहले बचकर चलता था
आते ही कठिन रुकावट, रुक जाता था
फिर से नये सिरे से काम दूसरा करता था
इस तरह अधूरे कामों का लग गया ढेर जब
सहसा मुझको लगा कि ऐसे में तो
मंजिल कभी नहीं मिल पायेगी!
तब से मैंने संकट से डरना छोड़ दिया
हो कठिन रुकावट कितनी भी
मैं बिना हटाये उसे न पीछे हटता हूं
प्राणों की बाजी लगा किसी भी हालत में
अपने सारे कामों को पूरा करता हूं
कमजोरी जो भी लगती अपनी मुझे, उसे ही
ताकत में परिवर्तित करता जाता हूं
कितने भी अशुभ रहे हों सारे लक्षण पर
पीकर के सारा गरल, अंत में शिव ही बने शुभंकर थे!
रचनाकाल : 10 सितंबर 2023
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