जद्दोजहद
था वह भी कोई समय
कि जब मैं भीषण युद्ध लड़ा करता
कर देता लहूलुहान स्वयं को, लेकिन मन को
करने देता था न कभी भी मनमानी।
अब नहीं शक्ति वह पहले जैसी रही
सह नहीं पाता सुख या दु:ख ज्यादा
इसलिये निरंतर रखता खुद को सजग
हमेशा करता साफ-सफाई मन की
छोटे-छोटे दोषों को करता रहता निर्मूल
अगर जड़ जरा पकड़ ली ज्यादा
तो है पता कि छुटकारा न कभी फिर उनसे पाऊंगा।
पहले के जैसा दौड़ नहीं पाता हूं अब फर्राटे से
कछुए के जैसा घिसट-घिसट कर चलता हूं
पर मन को होने देता नहीं निरंकुश
देती है यह सीख कहानी
चलना जारी रखे निरंतर तो
कछुआ भी जीता करता है!
रचनाकाल : 28-29 अगस्त 2023
कि जब मैं भीषण युद्ध लड़ा करता
कर देता लहूलुहान स्वयं को, लेकिन मन को
करने देता था न कभी भी मनमानी।
अब नहीं शक्ति वह पहले जैसी रही
सह नहीं पाता सुख या दु:ख ज्यादा
इसलिये निरंतर रखता खुद को सजग
हमेशा करता साफ-सफाई मन की
छोटे-छोटे दोषों को करता रहता निर्मूल
अगर जड़ जरा पकड़ ली ज्यादा
तो है पता कि छुटकारा न कभी फिर उनसे पाऊंगा।
पहले के जैसा दौड़ नहीं पाता हूं अब फर्राटे से
कछुए के जैसा घिसट-घिसट कर चलता हूं
पर मन को होने देता नहीं निरंकुश
देती है यह सीख कहानी
चलना जारी रखे निरंतर तो
कछुआ भी जीता करता है!
रचनाकाल : 28-29 अगस्त 2023
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