जीने की राह
जो जैसा सोचा करता है
वह वैसा ही बन जाता है
दुनिया यह बहुत लचीली है
कुछ भी है यहां असत्य नहीं
विश्वास परस्पर रखकर भी विपरीत
सभी सच के पथ पर हो सकते हैं
मिलते हैं अच्छे लोग आस्तिकों में जितने
उतने ही अच्छे नास्तिक भी मिल जाते हैं
यह बात लगे कितनी अजीब भी चाहे
मछली खाकर भी बंगाली लेकिन
भावुक सबसे ज्यादा होते हैं
होकर भी नानवेज मुस्लिम
ग़ज़लें-नज़्में लिख लेते हैं!
मैं शुद्ध अहिंसावादी हूं
पर पता मुझे है जंगल में
हिंसा की सत्ता चलती है
इसलिये नहीं मैं कोशिश करता
सब मेरे ही जैसे हों
जो जैसा भी है भीतर से
अपने विश्वासों पर वह सदा खरा उतरे
खुद से न करे नाइंसाफी
तो जीना शायद सफल सभी का होता है!
रचनाकाल : 30 अगस्त 2023
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