आत्मनिरीक्षण
जब भी दुनिया बुरी नजर आती मुझको
मैं जाता हूं यह समझ बुराई मेरे भीतर पैठ चुकी है
ठहरे पानी जैसा मन मेरा है सड़ने लगा
वक्त आ गया कि अपनी साफ-सफाई करने का।
महसूस किया है मैंने यह हरदम
कि नहीं कर पाता हूं जब आत्मनिरीक्षण कई दिनों तक
धुंधलाने लग जाता है मन का दर्पण
हर चीज नजर आने लगती है बुरी
निराशा मन में छाने लगती है।
इसलिये कसौटी बना रखी है मैंने खुद की खातिर
जैसे ही निंदा रस अच्छा लगने लगता है
औरों पर दोषारोपण करने का मन करने लगता है
हो जाता अंतर्मुखी, ढूंढ़ता कहां बुराई छिपी
हमेशा मेरे भीतर से ही तब कचरे का ढेर निकलता है।
इस तरह बुराई करता हूं मैं दूर
स्वयं बनता हूं पहले से थोड़ा सा बेहतर
दुनिया भी पहले से बेहतर बनती जाती है
जो बुरे नजर आते थे पहले
अच्छाई में मुझसे आगे दिखते हैं
उनको पाने की कोशिश में
मैं भी अच्छाई के पथ पर
आगे ही बढ़ता जाता हूं।
रचनाकाल : 23 मार्च 2023
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