आत्म संघर्ष-१
हर गलती मुझे असहज कर देती है
अन्याय-अत्याचार देख खौल उठता है खून
लेकिन देखता हूँ जब ध्यान से
दिखाई देती हैं उसकी जड़ें
मेरे भीतर भी.
अनगिनत बारीक नसें
पहुँचाती हैं मेरा भी खून
करती हैं पोषण
अत्याचार के उस वृक्ष का
और रुक जाते हैं हाथ
करने से प्रहार
उसकी मोटी जड़ पर
क्योंकि लगते ही घाव उस पर
तेजी से बहेगा खून
मेरे शरीर से
सम्भव नहीं है ऐसे
लड़ना अपने आप से.
इसीलिये काटता हूँ
अपनी बारीक जड़ें
जुड़ीं जो उस वृक्ष से
होता लथपथ खून से.
काटे बिना लेकिन
अपने को उस वृक्ष से
सम्भव नहीं लड़ना अत्याचार से
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