मुर्दा शांति


सुनता तो था न कभी
इन दिनों समाचार
खबरों पर लेकिन अब
कान लगे रहते हैं
हटाया है जबसे मिस्रवासियों ने
हुस्नी मुबारक को
भड़क गई है आग
दूसरे भी देशों में
अरब ही नहीं बल्कि
अफ्रीका के सुदूर
बुगोतीवासी भी
चाहते हैं लोकतंत्र।
पिछले कई दिनों से
चल रहा प्रदर्शन लगातार
यमन, बहरीन में।
लीबिया में मर चुके हैं सैकड़ों
जार्डन, कुवैत और
सऊदी अरब, ओमान
उतर आई सब जगह
जनता सड़क पर
भिड़ गई अलजीरिया में सेना से।

चकित हूं यह देखकर
कि फैली थी दुनिया में
इतनी तानाशाही
लोकतंत्र के नाम पर!
शांतिमय प्रदर्शन से
साबित किया है मिस्रवासियों ने
गांधी अभी जिंदा हैं।

सहनशील लेकिन नहीं हैं सब
परीक्षा ले रहा कठिन लीबिया
अपने ही लोगों की!
सेना ने मार डाला दो सौ को
पुलिस वालों को भी दो
लोगों ने जला दिया।
याद आता है चौरीचौरा
शासक तो जालिम हैं
उतने ही आज भी
गांधी लेकिन उतने सहनशील नहीं
डर लगता इसीलिए
भड़का जो दावानल
रोकेगा कौन उसे?

लेकिन अपने देश की
सहनशीलता को देख
क्षोभ गहरा होता है
उजागर हुए हैं भ्रष्टाचार जो
लाखों करोड़ों के
आंकड़ों के अर्थ ही बदल गए
लाखों के मतलब भी
हो गए करोड़ों।
गजब लेकिन यह है कि
फिर भी हम चुप हैं
शर्मनाक है यह सहनशीलता
इससे तो बेहतर है
लीबिया की हिंसा
गांधी के देश में
बदनाम हो रही अहिंसा।

चाहता हूं इसीलिए
सुलगाना चिंगारी
सक्रि य अहिंसा से
लड़ना भ्रष्टाचार से।
खतरे तो बेशक हैं
आग बाहर हो सकती काबू से
बन सकती दावानल।
लेकिन बिना आग का
जीवन यह बदतर है
इस मुर्दा शांति से
तांडव वह बेहतर है।

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