प्रार्थना


भयानक समय है
नहीं दिखता जब कोई आधार
निपटने के लिए इससे
लेता शरण कविता की।
नहीं, छुड़ाना नहीं चाहता हूँ पीछा इससे
सिर आँखों पर सारी यातना
लय न टूटे भीतर की
बस यही कामना।
नहीं है शक्ति, न सही
टूट जाऊँ चाहे खुद
नियम न टूटें
बस यही है प्रार्थना।
दीन तो मैं कभी न था
आज की यह प्रार्थना भी दीनता नहीं
समझता रहा पर जिसे स्वाभिमान
दुखाया न हो दिल इसने
घमंड के धोखे में!
लगी हो किसी को ठेस
तो मांगता हूँ क्षमा।
चिंता नहीं अपनी मुझेे 
क्रूर से क्रूर समय भी
नहीं कर सकता विचलित
पर बनी रहे दुनिया
जीने के काबिल
अनजानी ठेसों से
जम गई हो अगर
पिघल सके कठोरता
इसीलिए व्याकुल हूँ
बनता हूँ दीन
माँगता हूँ क्षमा।
मनुष्यों की क्रूरता
मैं सह नहीं पाता
काँपता हूँ थर-थर
करता हूँ प्रार्थना।

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