कविता और जीवन


गोल-गोल घेरे में घूमने लगी है कविता
आने लगे हैैं फिर-फिर वही शब्द
कारण तो जानता हूं अच्छी तरह
नहीं तोड़ पा रहा पर दायरे को अपने
घूमने लगा हूं गोल-गोल घेरे में
नहीं तोड़ पा रहा हूं नई जमीन
जीने लगा हूं सेफ जोन में
सड़ने लगा है पानी ठहरा हुआ।
आगे बढ़ाने खातिर कविता को
चाहता हूं डालना खुद को
अनजानी राहों पर
उठाना चाहता हूं खतरे
कि नाभिनालबद्ध है
जीवन से कविता
जितना ही आगे बढ़ूंगा मैं
वह भी बढ़ती जाएगी
जितना ही जोखिम उठाऊंगा
निखरती ही जायेगी वह उतना ही।
रचनाकाल : 9 मई 2020
  

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