स्वप्न और यथार्थ
अक्सर होता है इन दिनों विचित्र अहसास
सोते हुए लगता है कि जाग रहा हूं
और जागते हुए लगता है
कि नींद में देख रहा हूं सपना
सब कुछ गड्ड-मड्ड हो गया है
नहीं दीखती कहीं कोई
यथार्थ और सपने के बीच सीमारेखा
सपने तो अब भी करते हैं मंत्रमुग्ध
पर भयावह यथार्थ डराता है
चाहता हूं सपनों को
यथार्थ के धरातल पर उतारना
पर नजर नहीं आता कोई उपाय
सपने संजोये हुए मन में
विचरता हूं भीषण यथार्थ में
झुलसता है तन रेगिस्तान में
पुलकित होता है मन
सपनों की उड़ान में।
रचनाकाल : 29 अप्रैल 2020
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